श्रवण कुमार एक आदर्श पुत्र (Hindi Moral Stories)
एक समय की बात है ,एक श्रवण कुमार नाम का बालक अपने गरीब माता-पिता के साथ रहता था। उसके माता-पिता अंधे थे।
उन्होंने उसकी परवरिश बहुत अच्छी की थी। श्रवण कुमार बहुत स्वस्थ ईमानदार और अच्छे चरित्र वाला बालक था वह अपने माता-पिता की बहुत इज्जत करता था। वह अपने माता पिता की सेवा करता रहता था और उसमें कोई कमी ना हो इसका भी ख्याल रखता था। एक दिन श्रवण कुमार के माता-पिता ने तीर्थ यात्रा पर जाने की इच्छा जताई। श्रवण कुमार ने उनकी इच्छा पूर्ण करने का संकल्प लिया। वह अपने माता-पिता को बहुत आराम से तीर्थ यात्रा करवाना चाहता था ताकि तीर्थ यात्रा भी हो जाए और माता-पिता को कोई कष्ट ना हो।

उसने दो बड़ी-बड़ी टोकरियों को एक बड़ी और लम्बी लकड़ी के दोनों छोर से रस्सी से बांध दिया और अपने माता पिता को उन बड़ी-बड़ी टोकरियों पर बिठाकर तीर्थ यात्रा के लिए निकल पड़ा। उसके माता-पिता उसका यह प्रयास देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए।
तीर्थ यात्रा करते करते कुछ समय बाद वह अयोध्या के जंगल में पहुंचे और वहां पर थोड़ी देर विश्राम किया। श्रवण कुमार के माता-पिता बहुत प्यासे थे। उन्होंने अपने बच्चे से पानी लाने को कहा। श्रवण कुमार तुरंत अपने माता पिता की आज्ञा पाकर एक बर्तन लेकर सरयू नदी से पानी लाने चला गया।
उसी समय राजा दशरथ उसी जंगल में शिकार कर रहे थे। वह जंगल में शिकार अकेले करने आए थे। उनके पास एक बहुत खास हुनर था। वह जरा सी आवाज सुनकर, बिना देखे अपने लक्ष्य को भेद सकते थे। दशरथ ने श्रवण कुमार को सरयू नदी से पानी भरते सुना और अपना बाण छोड़ दिया। यह जाने बगैर कि वहां एक मनुष्य पानी भर रहा है, उन्हें ऐसा लगा कि कोई जानवर पानी पीने आया है। दुर्भाग्य पूर्वक वह बाण सीधा जाकर श्रवण कुमार के पीने ह्रदय पर लगा और उसे छलनी कर दिया श्रवण कुमार चिल्ला कर नीचे गिर पड़ा।

श्रवण कुमार की चीख सुनकर राजा दशरथ नदी किनारे दौड़े। उन्होंने देखा कि वहां पर एक बालक तड़प रहा है। राजा दशरथ बहुत दु:खी हुए। अपने ऊपर राजा दशरथ अत्यंत क्रोधित हो रहे थे कि उनसे यह गलती कैसे हो गई ?जब श्रवण कुमार ने राजा को देखा तो उन्हें अपने पास बुलाया और कहा, “मैं अपने माता-पिता के लिए यहां पानी भरने आया था वे बहुत प्यासे हैं”. यदि आप यह पानी मेरे माता-पिता तक पहुंचा देते हैं तो बड़ी कृपा होगी। यह कहकर श्रवण कुमार मृत हो गया।
जब राजा दशरथ ने श्रवण कुमार के माता पिता को पानी दिया, तब उन्हें यह एहसास हो गया कि श्रवण कुमार यहां नहीं है। उन्होंने पानी देने से इनकार कर दिया।
राजा दशरथ ने उन्हें दु:खद घटना के बारे में बताया श्रवण कुमार के अंधे माता पिता को बहुत अधिक सदमा लगा। वह बहुत दु:खी हुए उन्होंने राजा दशरथ को श्राप दिया कि जिस प्रकार अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनकर हमें अत्यंत पीड़ा हो रही है, उसी प्रकार तुम भी अपने पुत्र के वियोग में मृत्यु को प्राप्त होगे। (Hindi Moral Stories)
यह कह कर वह राजा से अपने पुत्र के पास जाने के लिए वे कहने लगे। राजा दशरथ ने उन्हें श्रवण कुमार के शरीर के पास ले गए और वहां पहुँचकर माता पिता रोने लगे। उन्होंने श्रवण कुमार के मुख से अंतिम शब्द सुने। वह शब्द थे, “आपकी सेवा करके मुझे स्वर्ग प्राप्त हो गया है। आप लोगों का वहां मैं इंतजार कर रहा हूं। आज भी हम श्रवण कुमार को एक आदर्श पुत्र के रूप में जानते हैं।
Moral: Respect and love your parents and elders. Help them in whatever way you can.
शरारती बच्चा (Hindi Moral Stories)
बालू एक चालाक शरारती बच्चा था। वह अपना टैलेंट शरारत करने में बर्बाद कर रहा था। उसका मन पसंदीदा काम लोगों को तंग करना था। जब लोगों को तंग करने की बारी आती तो बालू कोई भी मौका नहीं चूकना चाहता था। एक दिन नाई की दुकान में उसने एक नाई को किसी व्यक्ति की दाढ़ी बनाते हुए देखा। उसे एक शरारत सूझी।

वह नाई के पास गया और कहा नाई काका, आप दाढ़ी बनाने का कितना रुपए लेते हो ? नाई ने बहुत आश्चर्यचकित होकर के बालू से पूछने लगा कि तुम दाढ़ी क्यों बनवाना चाहते हो ? बालू ने कहा. “आप मुझे बस यह बताइए दाढ़ी बनाने के कितने पैसे लगते हैं ? मुझे दाढ़ी बनवाना है।” नाई ने कहा, “पांच रूपए।”
नाई को कुछ समझ में नहीं आ रहा था लेकिन वह इतना समझ चुका था कि यह बच्चा कुछ शरारत करना चाहता है। नाई ने बालू को सबक सिखाने की तैयारी कर ली।
उसने बालू को कुर्सी पर बिठाया और शेविंग क्रीम लगा कर दूसरे ग्राहक की हजामत बनाने लगा। लंबे समय तक इंतजार करता रहा लेकिन नाई भी दूसरे ग्राहक की हजामत बनाने में लगा रहा। अब बालू से इंतजार नहीं हो पा रहा था।
अंत में तंग आकर बालू ने कहा, “ओ नाई काका, मैं लंबे समय से इंतजार कर रहा हूं, आप मेरी दाढ़ी नहीं बना रहे हैं।” नाई ने उत्तर दिया, “ग्राहक साहब ! मैं आपकी दाढ़ी बढ़ने का इंतजार कर रहा हूं।

जब आपकी दाढ़ी पड़ेगी तभी तो बनाऊंगा ना। बालू को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे ?
बेचारे बालू का दाँव आज उस पर ही उल्टा पड़ गया।